धनबाद में ’12 घंटे काम’ के फरमान के खिलाफ सड़कों पर उतरे मजदूर, श्रम संहिताओं की प्रतियां फूंकी

मनीष कुमार झा

धनबाद (झारखंड), 26 नवंबर

धनबाद: कोयलांचल की राजधानी धनबाद में आज संविधान दिवस (26 नवंबर) के मौके पर केंद्र सरकार के खिलाफ जबरदस्त मजदूर आंदोलन देखने को मिला। विभिन्न मजदूर संघों के बैनर तले हजारों की संख्या में मजदूरों ने ’12 घंटे कार्यदिवस’ के प्रावधान वाली नई श्रम संहिताओं (New Labour Codes) के विरोध में सड़कों पर मार्च किया और उन्हें ‘तुगलकी फरमान’ करार दिया। प्रदर्शनकारी मजदूरों ने श्रम संहिताओं से संबंधित राजपत्र की प्रतियां भी सार्वजनिक रूप से जलाईं और सरकार विरोधी नारे लगाए।

​📜 संविधान दिवस और ‘तुगलकी फरमान’ का विरोध

​यह विरोध प्रदर्शन इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यह उस दिन हुआ जब राष्ट्र भारत के संविधान को अपनाने का जश्न मना रहा था—एक ऐसा संविधान जो प्रत्येक नागरिक के लिए न्याय, स्वतंत्रता और समानता सुनिश्चित करता है।

​विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे एक प्रमुख मजदूर नेता जसीम ने कहा, “आज का दिन हमारे संविधान के निर्माण का साक्षी है, जिसने हमें मानवीय गरिमा और काम के 8 घंटे का अधिकार दिया। लेकिन आज ही के दिन, केंद्र सरकार का यह ‘तुगलकी फरमान’ (12 घंटे काम का प्रावधान) लागू करने की कोशिश की जा रही है, जो सीधे तौर पर हमारे मौलिक अधिकारों पर हमला है। यह हमें वापस गुलामी के दौर में धकेलने की साजिश है।”

​मजदूरों का स्पष्ट कहना है कि 12 घंटे का कार्यदिवस उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए घातक होगा और उनके पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन को पूरी तरह से नष्ट कर देगा।

​🏭 क्या है नए श्रम कानून का विवाद?

​केंद्र सरकार ने हाल ही में चार श्रम संहिताओं – मजदूरी संहिता (Code on Wages), औद्योगिक संबंध संहिता (Industrial Relations Code), सामाजिक सुरक्षा संहिता (Code on Social Security) और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य शर्त संहिता (Occupational Safety, Health and Working Conditions Code) को अधिसूचित किया है। इन संहिताओं को 29 पुराने कानूनों की जगह लाया गया है।

​विवाद का मुख्य केंद्र व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य शर्त संहिता (OSH Code) है।

  • विवादास्पद प्रावधान: यह संहिता कंपनियों को यह अनुमति देती है कि वे कर्मचारियों से 12 घंटे तक की शिफ्ट में काम करवा सकती हैं। हालांकि, इसमें एक शर्त यह भी है कि किसी भी कर्मचारी से एक सप्ताह में अधिकतम 48 घंटे ही काम लिया जा सकता है।
  • सरकार का पक्ष: सरकार और उद्योग जगत का तर्क है कि यह प्रावधान उन कंपनियों को लचीलापन देता है जो चार दिन काम और तीन दिन छुट्टी का मॉडल अपनाना चाहती हैं (यानी सप्ताह में 4 दिन 12 घंटे काम)। उनका कहना है कि इससे उत्पादकता बढ़ेगी और कर्मचारी को अधिक लंबी छुट्टी मिलेगी।
  • मजदूर संघों का खंडन: मजदूर संघ इस तर्क को सिरे से खारिज करते हैं। उनका कहना है कि भारत में अधिकांश मजदूर, विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र और खदानों में काम करने वाले, इस सुविधा का लाभ नहीं उठा पाएंगे। उन्हें 12 घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जाएगा, लेकिन बदले में उन्हें उचित ओवर टाइम या 3 दिन की छुट्टी नहीं मिलेगी। उन्हें डर है कि यह प्रावधान अंततः अनिवार्य 12 घंटे की शिफ्ट में बदल जाएगा, जिससे 8 घंटे की ऐतिहासिक उपलब्धि समाप्त हो जाएगी।

​🔥 प्रशासनिक लापरवाही और विरोध की आग

​ प्रदर्शनकारियों ने केंद्र सरकार, विशेषकर श्रम मंत्रालय के खिलाफ जोरदार नारेबाजी की। “12 घंटे काम नहीं चलेगा!”, “श्रम विरोधी कानून वापस लो!”, और “मजदूर एकता जिंदाबाद!” के नारे लगाए।

​एक भावनात्मक क्षण तब आया जब प्रदर्शनकारियों ने एकत्रित होकर नए श्रम संहिताओं की प्रतीकात्मक प्रतियां जलाईं। उन्होंने इसे ‘तानाशाही’ और ‘पूंजीपतियों के सामने घुटने टेकने’ वाला कदम बताया।

​ यूनियन ने एक  बयान जारी कर कहा कि नई श्रम संहिताएं न केवल कार्य के घंटों में वृद्धि करती हैं, बल्कि छंटनी (Retrenchment) को आसान बनाती हैं, ट्रेड यूनियन बनाने के अधिकारों को कमजोर करती हैं, और सामाजिक सुरक्षा के लाभों को सीमित करती हैं।

​”यह सिर्फ 12 घंटे काम का मसला नहीं है। ये संहिताएं मालिकों को मजदूरों को जब चाहें तब निकालने, यूनियन बनाने से रोकने और न्यूनतम मजदूरी को दरकिनार करने की खुली छूट देती हैं। यह देश के औद्योगिक लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।”

– ( कलीम अंसारी, संयोजक चालक संघ

 

​📈 झारखंड पर असर

​झारखंड एक खनिज-संपन्न राज्य है जहाँ बड़ी संख्या में मजदूर खनन, इस्पात और अन्य उद्योगों में कार्यरत हैं। 12 घंटे की शिफ्ट का सबसे बड़ा असर यहाँ के कोयला मजदूरों और खदानों में काम करने वाले श्रमिकों पर पड़ेगा, जिनका काम पहले से ही जोखिम भरा होता है। यूनियनों का कहना है कि 8 घंटे की शिफ्ट में काम करना भी मुश्किल होता है, 12 घंटे की शिफ्ट से दुर्घटनाओं और स्वास्थ्य समस्याओं में भारी वृद्धि होगी।

​⏳ आगे की रणनीति

​मजदूर संघों ने चेतावनी दी है कि यह विरोध केवल शुरुआत है। उन्होंने घोषणा की है कि अगर केंद्र सरकार ने ‘तुगलकी फरमान’ वापस नहीं लिया, तो आने वाले हफ्तों में राज्यव्यापी बंद और देशव्यापी हड़ताल की योजना बनाई जाएगी।

 धनबाद में संविधान दिवस पर हुआ यह विरोध प्रदर्शन देश भर के श्रम अधिकारों की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यह देखना होगा कि केंद्र सरकार मजदूरों की इन गंभीर चिंताओं को कैसे दूर करती है और क्या काम के घंटों को लेकर कोई मध्य मार्ग निकाला जाता है।

By Manish Jha

MANISH JHA EDITOR OF NEWS 69 BHARAT

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