दिल्ली-एनसीआर की सड़कों पर आवारा कुत्तों की समस्या को देखते हुए, Supreme Court of India ने हाल-ही में एक अहम आदेश जारी किया। इस आदेश के बाद पशु-प्रेमियों, खासकर डॉग लवर समूहों में गहरी नाराजगी देखने को मिल रही है। वे सवाल उठाते हैं — जब सरकार के पास पर्याप्त संसाधन व व्यवस्था नहीं है, तब इतने बड़ी संख्या में आवारा कुत्तों को शेल्टर भेजने का निर्णय कैसे संभव होगा?
आदेश क्या था?
11 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर के सभी आवारा कुत्तों को ८ हफ्ते के भीतर पकड़कर शेल्टर या पाउंड में भेजने का आदेश दिया था, और कहा गया था कि इन्हें वापस सड़कों पर छोड़ा नहीं जाएगा।
मुख्य बेंच ने कहा था कि यह आदेश “जनहित” की दृष्टि से दिया गया है क्योंकि बच्चों और बुज़ुर्गों में कुत्तों के काटने व रेबीज़ के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
लेकिन बाद में 22 अगस्त को कोर्ट ने इस आदेश में संशोधन किया — अब ज़रूरी है कि पकड़े गए कुत्तों को उपचार (नसबंदी-टीकाकरण-डीरमिंग) के बाद उसी इलाके में वापस छोड़ा जाए, सिवाय उन कुत्तों के जो रेबीज़ से संक्रमित हों या आक्रामक व्यवहार दिखा रहे हों।
पशु-प्रेमियों की आपत्ति
एक प्रमुख चिंता है कि इतनी बड़ी संख्या (प्रकाशित अनुमानों के अनुसार दिल्ली में लगभग एक लाख या उससे भी ज्यादा) में आवारा कुत्तों को शेल्टर में भेजने की व्यवस्था सरकार के पास फिलहाल नहीं है।
– वे कहते हैं कि इस आदेश से सिर्फ समस्या का नामान्तरण हो रहा है — सड़क से हटाकर शेल्टर में बंद करना — जबकि नसबंदी (स्टेरिलाइज़ेशन) और टीकाकरण (एंटी-रेबीज़) जैसी वैज्ञानिक एवं मानवीय पद्धतियाँ अनदेखी हो रही हैं।
– कुछ पशु-प्रेमियों ने यह भी कहा है कि इस तरह के बड़े पैमाने पर संचालित शेल्टर में कुत्तों के साथ दुराचरण, तस्करी या उपेक्षा की संभावना बढ़ जाती है — “कहीं इन्हें तस्करी के लिए न भेजा जाए”, इस प्रकार की चिंता जाहिर की जा रही है।
इस पूरे फैसले से सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी प्रश्न उठे हैं क्या यह तरीका व्यवहार-योग्य है? क्या यह पशु-कल्याण के सिद्धांतों के अनुकूल है?
विशेषज्ञों का सुझाव: नसबंदी + टीकाकरण
प्रभावी समाधान के रूप में सामने आया है कि आवारा कुत्तों की संख्या कम करने व मानव-पशु संघर्ष घटाने के लिए:
1. नसबंदी (स्टेरिलाइज़ेशन) — कुत्तों को पकड़कर नसबंदी करना ताकि उनकी संख्या बढ़ना कम हो जाए।
2. टीकाकरण (एंटी-रेबीज़ वैक्सीन) — रेबीज़ संक्रमण को रोकने के लिए हर पकड़े गए कुत्ते को वैक्सीन देना।
3. निर्धारित भोजन-क्षेत्र (फीडिंग जोन) — कुत्तों को सामाजिक रूप से नियंत्रित व सुरक्षित तरीके से खाना देना, जिससे मानव-पशु टकराव कम हो।
यह मॉडल भारत में पहले से अपनाया जा रहा है और पशु-कल्याण संगठनों द्वारा इसे मानवीय व टिकाऊ माना गया है।
क्या व्यवस्था नहीं है?
दिल्ली-एनसीआर में शेल्टर-होम्स की संख्या, ज़मीन, प्रशिक्षित कर्मी, पर्याप्त वैक्सीन व संसाधन पर्याप्त नहीं देखे जा रहे। पशु-प्रेमियों की नज़रों में यह आदेश तभी व्यावहारिक बनेगा जब ये आधारभूत व्यवस्थाएँ पुख्ता हों।
आदेश में निर्गत था कि शेल्टर/पाउंड्स का निर्माण एक साथ किया जाए एवं पकड़ाई व स्थानांतरण प्रक्रिया समानांतर चलनी चाहिए। लेकिन इस पर विवरण या रोड-मैप स्पष्ट नहीं है।
“कुत्तों को वापस नहीं छोड़ा जाएगा” के पहले आदेश में यह स्पष्ट था, लेकिन संसाधनों की कमी व निष्पादन-चुनौतियों के कारण बाद में संशोधन किया गया।
निष्कर्ष
दिल्ली में आवारा कुत्तों का प्रबंधन एक जटिल समस्या है — जहाँ एक ओर मानव-स्वास्थ्य व सुरक्षा का प्रश्न है (कुत्तों के काटने, रेबीज़ संक्रमण की संभावना) और दूसरी ओर पशु-कल्याण व मानवीय दृष्टिकोण से आवारा जानवरों की रक्षा-भूमिका है।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश इन दोनों पक्षों को संतुलित करना चाहता था, लेकिन संसाधनों की कमी व व्यापक सामाजिक प्रतिक्रियाओं ने इसे विवादित बना दिया है। पशु-प्रेमियों का कहना है कि भावनात्मक प्रतिक्रिया से कहीं ज्यादा चाहिए वैज्ञानिक, व्यवस्थित और मानवीय समाधान। नसबंदी व टीकाकरण की नीति का समर्थन इस दृष्टि से किया जाना चाहिए।
यही समय है कि सरकार, प्रशासन, पशु-कल्याण संगठन व आम नागरिक मिलकर एक व्यवहार-योग्य रोडमैप बनाएं — जिसमें आवारा कुत्तों की संख्या नियंत्रित हो, मानव-पशु टकराव कम हो, और जानवरों के प्रति सहानुभूति व सुरक्षा दोनों सुनिश्चित हों।
