आज कहानी एक ऐसे गांव की, जो शहर से नजदीक है,पर विकास से है कोसों दूर।
जी हां सही पढ़ा आपने, झारखंड में कागज पर भले ही विकास की धारा बह रही हो ,परंतु धरातल पर आज भी कुछ ऐसे गांव हैं जहां 70 वर्ष पहले की जिंदगी जीने को ग्रामीण मजबूर है।

 

झारखंड का लातेहार जिला लगातार सुर्खियों में रहा है, सेंसेटिव क्षेत्र होने के कारण ,ग्रामीण परेशान नजर आते हैं।
सरकार केंद्र की हो या राज्य की, यह दावा करती है कि, ऐसे क्षेत्रों में जाकर हम लगातार आम जनों को सुविधा प्रदान कर रहे हैं, जिससे कि भटके हुए युवा फिर से मुख्य धारा में शामिल हो सके।

केंद्र या राज्य सरकार योजना बनाती है ।परंतु स्थानीय प्रशासन इसे धरातल पर कितना उतार पाते हैं? इसका नमूना हम आपको बता रहे हैं।

झारखंड सरकार लगातार चार वर्षो से सरकार आपके द्वार कार्यक्रम का आयोजन कर रही है। परंतु लातेहार के महुआटांड प्रखंड का कोना गांव में आज भी यातायात का कोई साधन नहीं है, पूल नहीं होने के कारण गांव वाले को गर्भवती महिलाओं को लेकर, बीमार बुजुर्गों को लेकर लगभग 2 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है।
श्रवण कुमार के तर्ज पर या पालकी पर मरीज को लेकर ग्रामीण मुख्य अस्पताल जाते हैं।

गांव कोई 25 -50 लोगों का नहीं है, गांव में लगभग 400 लोग रहते हैं। यदि नदी पर पुल बन जाता तो यहां के लोगों को भी यातायात का साधन उपयोग करने का मौका मिलता।
प्रश्न है, जब सरकार गांव से चलती है, और गांव पहुंचने का रास्ता नहीं है! ऐसे में गांव की सरकार रांची तक कैसे जाती है?
क्या मुख्यमंत्री ऐसे गांवों को मुख्य शहर से जोड़ेंगे?

परेशान ग्रामीण ने जब आप बीती बताया, तो हम भी विचलित हो गए, आश्चर्यचकित रह गए!
अनुमान है, केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार दोनों मिलकर ऐसे सुदूरवर्ती गांव का विकास करेंगे, जिससे हमारा देश मजबूत होगा , ग्रामीण को रोजगार मिलेगा, और देश को मानव संसाधन।

By Manish Jha

MANISH JHA EDITOR OF NEWS 69 BHARAT

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