केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन की मुलाकात हुई ,इसमें यह तय हुआ की 30 सितंबर को रांची में एक बड़े आयोजन में चंपई सोरेन भारतीय जनता पार्टी में शामिल होंगे।
हेमंत विश्वाशर्मा जो झारखंड के चुनावी प्रभारी हैं उन्होंने इस कदम को मास्टर स्टॉक माना है उनका मानना है 2019 में रघुवर दास की अगुवाई में सुदेश महतो की पर्टी आजसू ,बाबूलाल की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा एवं अन्य दलों को नजर अंदाज करने से झारखंड जैसे महत्वपूर्ण प्रदेश को भारतीय जनता पार्टी ने खो दिया।
अब इसे हासिल करने के लिए हर तरह के प्रयास किया जा रहे हैं।
चंपई सोरेन के दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री के मुलाकात करने से जहां केंद्रीय नेताओं में इस बात की खुशी है कि झारखंड में भी इस बार कमल खिलेगा। वही रमेश हांसदा जो सरायकेला से भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे हैं उन्होंने अपनी नाराजगी व्यक्त की है उनका मानना है की चंपई सोरेन हार के डर से भारतीय जनता पार्टी में आए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि लोकसभा के चुनाव में सरायकेला से ही उन्होंने अपने प्रत्याशी को बढ़त दिलाया था ।इसलिए उनकी जीत सुनिश्चित थी।
सूत्रों की माने तो बाबूलाल मरांडी भी चंपई सोरेन के आने की खबर से नाराज हैं ,जो अभी दिल्ली के दौरे पर हैं। हालांकि भारतीय जनता पार्टी की ओर से इसे पार्टी का कार्यक्रम बता रहा हैं।
गीता कोड़ा एवं सीता सोरेन दोनों लोकसभा इलेक्शन से पहले भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए और दोनों को हार का सामना करना पड़ा ।
विधानसभा चुनाव से पहले चंपई सोरेन का आगमन क्या भारतीय जनता पार्टी के लिए यह वरदान साबित होगा?
जिस तरह बीजेपी के प्रत्येक कार्यों को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन मुद्दा बनाते हैं और जनता को समझने में सफल होते हैं कि, यह भारतीय जनता पार्टी ,प्रदेश को अशांत करना चाहती है।
सीता सोरेन के समय में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं ने यह कहना प्रारंभ कर दिया था। कि, भारतीय जनता पार्टी घर फोड़ने में लगी है।
धनबाद में भी भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अपने ही ग्रामीण जिला अध्यक्ष का विरोध किया था यह कहते हुए की झारखंड मुक्ति मोर्चा से आए नेताओं का पार्टी में सम्मान बढ़ रहा है जबकि लंबे समय से झंडा ढोने वाले का कोई मूल्य नहीं समझा जा रहा है।
विधानसभा चुनाव से पहले सभी वर्गों को, भारतीय जनता पार्टी के ,मूल कार्यकर्ताओं को, एवं दूसरे पार्टी से आए नेताओं को साथ लेकर चलना, समझना भारतीय जनता पार्टी के लिए भी आसान नहीं होगा।