झारखंड की राजनीति में एक बार फिर हलचल देखने को मिली है, जब झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (JDKM) के पूर्व केंद्रीय सचिव प्रदीप महतो ने अपने पद और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उनके इस निर्णय ने न केवल संगठन के अंदर असंतोष की स्थिति को उजागर किया है, बल्कि पार्टी के नेतृत्व और दिशा को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

 

 

प्रदीप महतो ने अपने त्यागपत्र में कहा है कि विधायक जय राम महतो पार्टी की विचारधारा और मूल उद्देश्य से भटक गए हैं। उनके अनुसार, जय राम महतो अप्रत्यक्ष रूप से झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) को लाभ पहुँचा रहे हैं, जो कि झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा के अस्तित्व और स्वतंत्र राजनीतिक पहचान के लिए हानिकारक है। उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी अब अपने मुख्य लक्ष्य और संघर्ष की भावना से दूर हो चुकी है, जो कभी झारखंड के आम जन, श्रमिकों, किसानों और युवाओं के अधिकारों के लिए लड़ी जाती थी।

 

प्रदीप महतो का कहना है कि बाघमारा क्षेत्र में उन्होंने पार्टी को जमीन से जोड़ने का काम किया था। वे बताते हैं कि स्थानीय स्तर पर संगठन को सशक्त बनाने और जनता से जुड़ने के लिए उन्होंने और उनके साथियों ने वर्षों तक मेहनत की। लेकिन हाल के दिनों में नेतृत्व के फैसलों और व्यवहार से कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता जा रहा है। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उनके साथ अब अनेक पुराने साथी भी पार्टी छोड़ रहे हैं, क्योंकि उन्हें लग रहा है कि पार्टी अब जनहित से अधिक व्यक्तिगत हितों की ओर झुक गई है।

 

महतो ने घाटशिला उपचुनाव का भी उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसे समय में जब पार्टी को अपने प्रत्याशी और कार्यकर्ताओं को मजबूत करने की जरूरत है, विधायक जय राम महतो का ध्यान इस दिशा में नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि जय राम महतो बिहार जाकर “विपिन सर” के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं, जबकि झारखंड में पार्टी को उनकी सक्रिय भागीदारी की सख्त आवश्यकता है। प्रदीप महतो ने इसे कटनी और करनी में अंतर बताते हुए कहा कि जो नेता जनता के सामने एक बात कहते हैं और व्यवहार में कुछ और करते हैं, वे आंदोलनकारी राजनीति के आदर्शों से विश्वासघात कर रहे हैं।

 

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रदीप महतो का इस्तीफा पार्टी के अंदरूनी असंतोष की अभिव्यक्ति है, जो आगे चलकर संगठनात्मक संकट को और गहरा सकता है। बाघमारा क्षेत्र में प्रदीप महतो की अच्छी पकड़ रही है, और यदि उनके समर्थक भी पार्टी छोड़ते हैं, तो इसका सीधा असर झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा की जमीनी स्थिति पर पड़ेगा।

 

अंततः यह घटना झारखंड की राजनीति में उस प्रवृत्ति को उजागर करती है जहाँ छोटे क्षेत्रीय दलों के भीतर व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ और वैचारिक अस्थिरता संगठन की एकता को कमजोर कर रही हैं। प्रदीप महतो का त्यागपत्र केवल एक व्यक्ति का विरोध नहीं, बल्कि उस दिशा पर प्रश्न है जिसमें पार्टी आगे बढ़ रही है। उनका संदेश साफ है — यदि पार्टी अपने मूल उद्देश्य, पारदर्शिता और जनता के संघर्ष से न जुड़ी, तो उसका अस्तित्व संकट में पड़ सकता है।

By Manish Jha

MANISH JHA EDITOR OF NEWS 69 BHARAT

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